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रजत जयंती : विश्व बालिका दिवस पर स्वास्थ्य विभाग ने की शिविर का आयोजन

  सारंगढ़ बिलाईगढ़। रजत जयंती पर्व पर कलेक्टर डॉ संजय कन्नौजे के निर्देशानुसार मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एफ आर निराला के मार्गदर...

 


सारंगढ़ बिलाईगढ़। रजत जयंती पर्व पर कलेक्टर डॉ संजय कन्नौजे के निर्देशानुसार मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एफ आर निराला के मार्गदर्शन में गर्ल्स उच्चतर माध्यमिक शाला सरसीवां में विश्व बालिका दिवस मनाया गया।ऐसे ही कार्यक्रम तीनों ब्लॉक के सभी आयुष्मान आरोग्य मंदिर में आयोजित किया गया। 

इस कार्यक्रम में बच्चों में होने वाले जन्म जात विकृति, संक्रामक बीमारी जैसे टीबी, कुष्ठ आदि के विषय में भी बता कर बालिकाओं को जागरूक किया गया। अंत में बालिकाओं में माहवारी के समय की परेशानी के बारे में डॉक्टर नयना नवीन के द्वारा बालिकाओं को आवश्यक समझाइश दी गई।  इस अवसर पर प्राचार्य वी के जायसवाल, प्रभारी खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ शशि जायसवाल, डॉ श्रृति दुबे, मुकेश साहू तथा सेक्टर सरसीवां के सभी स्टाफ उपस्थित रहे।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एफ आर निराला ने  बालिकाओं को बालिका दिवस की बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि विश्व बालिका दिवस मनाने का उद्वेश्य बालिकाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य ,सुरक्षा ,सम्मान ,निर्णय लेने एवं नेतृत्व के अवसर प्रदान करना है। बालिकाओं में शिक्षा का अवसर मिले, बराबर का अवसर मिले शिक्षा में ड्रॉप आउट न हो, स्वास्थ्य अच्छा रहेगा बीमार नहीं होने पर एक सशक्त बालिका के रूप में उभर सकेगा। इस कारण बालिकाओं को उनके स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। बालिकाओं में सबसे ज्यादा स्वास्थ्य समस्या में रक्त अल्पता या खून की कमी का होता है। आज भी इसी विद्यालय में खून की जांच की गई जिसमे 86 बालिकाओं में सिर्फ 5 बालिकाओं की हीमोग्लोबिन 12 ग्राम प्रतिशत से ऊपर पाया गया अर्थात 81 बच्चे एनीमिया की श्रेणी में है।

बालिकाओं में एनीमिया के मुख्य कारण 1 संतुलित आहार की कमी उम्र के अनुसार शरीर के संचालन के लिए जितनी ऊर्जा की जरूरत होती है उसमें कमी है। 2 बच्चों में कृमि रोग होने के कारण भी एनीमिया होता है। कृमि शरीर के आंत में अपनी जगह बनाती है। हमारे द्वारा भोजन के पौष्टिक तत्व को कृमि द्वारा ग्रहण करने तथा खून को पीने के कारण बच्चों के शरीर में खून की कमी हो जाती है। सिकलसेल की बीमारी होने पर भी खून की कमी होती है क्योंकि सिकलसेल वाले बच्चों में आरबीसी का आकर हशिया के रूप में हो जाता है एवं इसकी आयु कम हो जाती है आरबीसी जल्दी मर जाने के कारण सिकलसेल वाले व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है।  10 वर्ष से 19 वर्ष के बालिकाओं में माहवारी प्रारंभ होने के कारण भी खून की कमी होने लगती है। इन कारणों से बालिकाओं में खून की कमी होती है।

बच्चों या बालिकाओं में खून की कमी होने से शरीर पर प्रभाव पड़ता है जैसे आइक्यू में 5 से 10 प्रतिशत की कमी हो जाती है। बच्चों में सीखने समझने की क्षमता प्रभावित होती है। बच्चों की शारीरिक और मानसिक विकास बाधित होती है तथा एकाग्रता में कमी हो जाती है।

संतुलित आहार ले, जिसमे पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट ,फैट ,खनिज लवण ,विटामिन और पानी की पर्याप्त मात्रा प्रति दिन मिलना चाहिए। खनिज लवण में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस ,जिंक सोडियम ,पोटेशियम ,आयोडीन आदि मिलना चाहिए।  कृमि नाशक गोली को प्रति वर्ष साल में 2 बार 6,  6 माह के अंतराल में लेना होता है।  प्रत्येक बालिकाओं को डब्ल्यूआईएफएस की गोली (10 से 19 वर्ष) जो नीले रंग की होती है प्रति मंगलवार को खाना खाने के बाद लेना होता है। वर्ष भर में 52 गोली अनिवार्य से लेने से जो खून की कमी शरीर में होता है उसकी पूर्ति हो जाती है। इसमें सिकल सेल होने पर डब्ल्यूआईएफएस की गोली की जगह सिर्फ फोलिक एसिड की गोली ली जानी चाहिए। बालिकाओं की दृष्टि या आंख की रोशनी ठीक रहे इसके लिए भी चर्चा की गई और नेत्र परीक्षण भी कराए गई। आंख की रोशनी अच्छी रहे इसके लिए मौसमी फल, हरे सब्जी के सेवन से मदद मिलती है। स्कूल में पढ़ाई करते समय सिर में दर्द ,आंख में दर्द ,आंख से आंसू आना ,चक्कर आना ,आंख से दिखाई कम पड़ना दृष्टि दोष के सूचक है। 

मिडिल स्कूल के बच्चों की नेत्र परीक्षण कर दृष्टि दोष वाले सभी बच्चों को शासन से चश्मा निःशुल्क प्रदान की जाती है तथा  पढ़ते समय रोशनी हमेशा पीछे से आना चाहिए। ऐसी व्यवस्था घर में पालको के द्वारा बच्चों के लिए किया जाना चाहिए और पालको को नजर भी रखनी चाहिए कि पढ़ते समय आंखों में कोई परेशानी हो तो पालक भी इसे जल्द पहचान सके और आंख की जांच कराए। आंख की सुरक्षा भी करनी होती है चोट से, बीमारी से जिससे आंख की रोशनी बनी रहे। आंख की सुरक्षा सभी की करनी चाहिए और नियमित जांच भी छोटे बच्चों में ( 9 माह से 5 वर्ष तक) रतौंधी के बचाव के लिए विटामिन ए की खुराक पिलाई जाती है। सभी बच्चों को पालक सक्रियता से पिलाने में सहयोग प्रदान करे  इससे भी आंख की रोशनी अच्छी बनी रहती है।


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